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Tuesday, April 11, 2023

टटिया स्थान

टटिया स्थान वृंदावन

        श्री रंगजी मन्दिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। विशाल भूखंड पर फैला हुआ है, किन्तु कोई दीवार,पत्थरो की घेराबंदी नहीं है। केवल बाँस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इसलिए टटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
         संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराजकी तपोस्थली है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, सन्त कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है।

                 स्थापना

        स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था। उनके शिष्य महन्त श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था।  तभी चारो ओर बाँस की टटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधु ही चले आ रहे है। उनकी विशेष वेशभूषा भी है।

               विग्रह

          श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है। मन्दिर का अनोखा नियम ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधु सेवा में लगाया जाता है। संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो माज के उलटे करके रख दिए जाते है, कभी भी यहाँ अन्न सामग्री कि कमी नहीं रहती थी।
        एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भर कर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे। श्री महन्त जी बोले- वाह खूब समय पर आप भेट लाये हैं। महन्त जी ने तुरन्त उन्हें खरल में पिसवाया और पान में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया कल के लिए कुछ नहीं रखा। संग्रह रहित विरक्त थे श्री महन्त जी। उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान व्यंजन पकवान भोग लगे स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते सब पदार्थ सन्त सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते।

             विशेष प्रसाद

        इस स्थान के महन्त पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय और आगुन्तक भक्तों कि विशाल भीड़ लगती है। श्री स्वामी जी के कडुवा और दंड के उस दिन सबको दर्शन लाभ होता है। उस दिन विशेष प्रकार कि स्वादिष्ट अर्बी का भोग लगता है और बँटता है। जो दही और घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है। यहाँ का अर्बी प्रसाद प्रसिद्ध है। इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है।

          एक प्रसंग

         एक दिन श्रीस्वामी ललितमोहिनी देव जी सन्त-सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे, किन्तु उनका मन कुछ उद्विग्न सा था। वे बार-बार आश्रम के प्रवेश द्वार की तरफ देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते। वहाँ रह रहे सन्त ने पूंछा- "स्वामी जी ! किसको देख रहे हैं, आपको किसका इन्तजार है ?" स्वामी जी बोले- एक मुसलमान भक्त है, श्री युगल किशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है उसका इन्तजार कर रहा हूँ। इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही। श्री स्वामी जी के पूछने पर उसने बताया, कि डींग के किले में भूमि कि खुदाई चल रही है, मैं वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ। कल खुदाई करते में मुझे यह घड़ा दीखा तो मैंने इसे मोहरों से भरा जान कर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख ले। रात को फिर मै इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख-लाख शुक्र अदा करते हुए कि, अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी घर आकर जब कलश में देखा तो इससे ये दो मूर्तियाँ निकली, एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी। स्वामी जी- इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हे किसने कहा ? मजदूर- जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओं ने आदेश दिया कि, हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो, इसलिए मैं इन्हें लेकर आया हूँ। स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा "भईया ! तुम बड़े भाग्यवान हो भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे।" वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा, रास्ते में सोच रहा था कि, इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा- मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था। आज की मजदूरी भी मारी गई। घर पहुँचा एक कौने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया। पत्नी ने पूछा- हो आये वृंदावन ? क्या लाये फकीर से ? भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से ? क्या जवाव देता इस व्यंग का ? उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली। पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस तरफ देखती है कि, घड़ा तो अशर्फियों से लबालव भरा है, आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली मियाँ वाह ! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए ? अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौंककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रु धारा बह निकली, बोला मै किसका शुक्रिया करूँ, खुदा का, या उस फकीर का जिसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी। फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाद कर लाने से भी मुझे मुक्त रखा।

जय श्री कृष्णा
कुंजबिहारी श्री हरिदास

Friday, April 7, 2023

हनुमानजी का विशिष्ट मन्दिर

सिहंपोर हनुमान जी ब्रज वृंदावन के अति प्राचीन विग्रहो में से एक है| श्रीकृष्ण के प्रपौत्र श्रीवज्रनाभ जी ने अपने प्रपितामह श्रीकृष्ण कि स्मृति में ब्रज में अनेको मंदिरो और विग्रहो कि स्थापना कि | लगभग 480 वर्ष पूर्व श्री रूप गोस्वामीपाद जी ने जब श्री गोविंद देव को प्रकट किया तब उनके साथ हि लगभग 5000वर्ष पूर्व  द्वापर युग के हि ये हनुमान जी , योगमाया देवी और श्री वृंदा देवी , बडे दाऊ जी महाराज , और भैरो बाबा के विग्रह भी प्रक्ट हुए |
 मुगल काल में यवनों के आक्रमण से बचाने के लिए अधिक्तर विग्रह जयपुर राजस्थान ले जाए गए परन्तु सिंहपौर हनुमान जी और योगमाया देवी आज भी वृंदावन मे श्रीगोविंद देव मंदिर घेरे में हि है | श्री वृंदा देवी ब्रज कि सीमा कामबन (भरतपुर -राजस्थान) तक तो गयी पर उसके बाद बहुत प्रयास करने पर भी वृंदा देवी के विग्रह को कोई वहाँ से न हिला पाया.. वृंदावन छोड के वृंदादेवी कैसे रह सकती थी ? इस भाव से उन्हे वहिं स्थापित कर दिया गया |  
इनके अतिरिक्त श्री बडे दाऊजी महाराज अनाज मण्डी वृन्दावन में और गौरानगर कालोनी स्थित गोविन्द कुण्ड टीले पर भैरो बाबा विराजित है | 

जब यवन श्री गोविन्द देव का मन्दिर तोड़ने को आये तो अचानक हज़ारों बन्दर आकर यहाँ इकट्ठे हो गये. उन्होंने समस्त यवनों को खदेड़ दिया.किसी की आँखें निकाल डालीं. किसी के कान-नाक काट लिये. काट-काट कर उन सबको यहाँ से भगा दिया. हनुमान जी इस विग्रह से ऐसी भयानक सिंह गर्जना हुई कि यवन डर डर कर भागने लगे , यह सब इन्हीं श्रीहनुमानजी के प्रभाव से हुआ. तभी से इनका नाम 'सिंहपौर श्रीहनुमानजी' प्रसिद्ध हुआ. 

 हनुमान जयंति के अवसर पर वृनंदावनवासियों का श्री सिहंपौर हनुमान जी के प्रति अटूट श्रृद्धा और प्रेम देखकर मैं गदगद हो गया | 
श्री सिहंपौर हनुमान जी महाराज कि जय !
जय जय श्री सीता राम !
जय जय श्री राधे श्याम !

Tuesday, March 28, 2023

श्री हिंगलाज माता मन्दिर

हिंगलाज मंदिर (नानी मन्दिर)
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पाकिस्तान के लसबेला से अरब सागर से छूकर निकलता 150 किमी तक फैला रेगिस्तान। बगल में 1000 फीट ऊँचे रेतीले पहाड़ों से गुजरती नदी। बाईं ओर दुनिया का सबसे विशाल मड ज्वालामुखी। जंगलों के बीच दूर तक परसा सन्नाटा और इस सन्नाटे के बीच से आती आवाज 'जय माता दी'। इन्हीं रास्तों में है धरती पर देवी माता का पहला स्थान माने जानेवाले पाकिस्तान स्थित एकमात्र शक्तिपीठ *'हिंगलाज मंदिर'*।

अमरनाथ जी से ज्यादा कठिन है हिंगलाज की यात्रा...
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करीब 2 लाख साल पुराने इस मंदिर में पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस मंदिर में नवरात्रि में गरबा से लेकर कन्या भोज तक सब होता है। देवी के *51 शक्तिपीठों* में से एक हिंगलाज मंदिर में नवरात्रि का जश्न करीब-करीब भारत जैसा ही होता है। कई बार इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि ये मंदिर पाक में है या भारत में। - हिंगलाज मंदिर जिस स्थान में है वो पाकिस्तान के सबसे बड़े हिंदू बाहुल्य इलाकों में से एक है। पूरे नवरात्रि यहां 3 किमी में मेला लगता है। दर्शन के लिए आनेवाली महिलाएं गरबा नृत्य करती हैं। पूजा-हवन होता है। कन्या खिलाई जाती हैं। माँ के भजनों की गूँज दूर-दूर सुनाई देती है। - कुल मिलाकर हर वो आस्था देखने को मिलती है जो भारत में नवरात्रि पूजा के दौरान होती है। नवरात्रि में हो जाती है साल भर के खर्चे के बराबर कमाई। - हिंगलाज मंदिर आनेवाले भक्तों की संख्या का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि नवरात्रि के 9 दिनों में यहाँ के लोग अपने साल भर के खर्चे के बराबर कमा लेते हैं। - मंदिर के प्रमुख पुजारी महाराज *श्री गोपाल गिरी जी* का कहना है कि नवरात्रि के दौरान भी मंदिर में हिंदू-मुस्लिम का कोई फर्क नहीं दिखता है। कई बार पुजारी-सेवक मुस्लिम टोपी पहने दिखते हैं। तो वहीं मुस्लिम भाई देवी माता की पूजा के दौरान साथ खड़े मिलते हैं। इनमें से अधिकतर *बलूचिस्तान-सिंध* के होते हैं। - हर साल पड़ने वाले 2 नवरात्रों में यहाँ सबसे ज्यादा भीड़ होती है। करीब 10 से 25 हजार भक्त रोज़ माता के दर्शन करने हिंगलाज आते हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश और पाकिस्तान के आस-पास के देश प्रमुख हैं। - चूंकि, हिंगलाज मंदिर को मुस्लिम *'नानी बीबी की हज'* या *पीरगाह* के तौर पर मानते हैं, इसलिए पीरगाह पर अफगानिस्तान, इजिप्ट और ईरान जैसे देशों के लोग भी आते हैं। *शिवजी* की पत्नी *माता सती* का सिर कटकर गिरने से बना *'हिंगलाज'* हिन्दू धर्म, शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक, सती के पिता राजा दक्ष अपनी बेटी का विवाह भगवान शंकर से होने से खुश नहीं थे। क्रोधित दक्ष ने बेटी का बहुत अपमान किया था। इससे दुखी सती ने खुद को हवनकुंड में जला डाला। इसे देखकर शंकर के गण ने राजा दक्ष का वध कर दिया था। घटना की खबर पाते ही शंकरजी दक्ष के घर पहुँचे। फिर सती के शव को कंधे पर उठाकर क्रोध में नृत्य करने लगे। शंकरजी को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के 51 टुकड़े कर दिए। ये टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, उन 51 जगहों को ही देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। टुकड़ों में से सती के शरीर का पहला हिस्सा यानी सिर *'किर्थर पहाड़ी'* पर गिरा, जिसे आज *हिंगलाज* के नाम से जानते हैं। इसी पहले हिस्से यानी सिर के चलते *पाकिस्तान* के *हिंगलाज मंदिर* को धरती पर माता का पहला स्थान कहते हैं।
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Monday, March 27, 2023

षष्ठम माँ कात्यायनी

भगवान कृष्ण की नगरी में वृन्दावन में भी देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक कात्यायनी पीठ स्थित है। इस मंदिर का नाम प्राचीन सिद्धपीठ में आता है। बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे, इसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के अवसर पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। बताया जाता है कि राधारानी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए इस शक्तिपीठ की पूजा की थी।

श्रीमद् भागवत में किया गया है उल्लेख

देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के 22वें अध्याय में उल्लेख किया है-

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥

हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनी! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र हमें पत‍ि के रूप में प्राप्‍त हों। हम आपकी अर्चना एवं वंदना करते हैं।

इसलिए भगवान ने किया महारास

गीता के अनुसार, राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसके लिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया।

नवरात्र के दौरान माता के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश रहता है वर्जित।

प्रत्येक मनोकामना होती है पूरी।

तब से आज तक यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के अवसर पर मनचाहा वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना शीघ्र पूरी होती है।

भगवान कृष्ण ने भी की थी पूजा

स्थानीय निवासियों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था। प्रत्येक वर्ष नवरात्र के अवसर पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है।

इन्होंने करवाया मंदिर का निर्माण

कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण फरवरी 1923 में स्वामी केशवानंद ने करवाया था। मां कात्यायनी के साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश की मूर्तियां हैं। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण देखते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और दिल और दिमाग में शांति पाते हैं।

                                                      

जय माता दी🙏

Tuesday, September 27, 2022

टेसू , झांझी उत्तर भारत की परंपरा

 उत्तर भारत में एक प्राचीन परंपरा टेसू और झाझी की है धीरे धीरे आधुनिकता में नगरों में यह लुप्त हो रही है परन्तु जैसा सभी जानते है भारत व उसकी परंपराओं की जड़ गांवों में है। जिसका वर्णन शास्त्रों में मिलता है ।

ब्रजलोक में विशेष रूप से प्रचलित है। लड़के टेसू, जो मनुष्य की आकृति का खिलौना होता है, लेकर द्वार-द्वार पर घूमते हैं, टेसू के गीत गाते है और पैसे माँगते हैं। विषय की दृष्टि से यह गीत बहुत ही ऊटपटाँग और अद्भुत कहे जा सकते हैं, किन्तु ये बड़े मनोरंजक होते हैं। टेसू को जनश्रुति एक प्राचीन वीर के रूप में स्मरण करती है। जिसका वर्णन
खाटू श्यामजी महाभारत के बर्बरीक के रूप हैं, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने खाटू श्याम नाम दिया। मान्यता है कि श्रीकृष्ण कलयुगी अवतार के रूप में खाटू श्यामजी खाटू में विराजित हैं। इन्हें कलयुग के अवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, खाटू नरेश व अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। 

पूर्णिमा के दिन टेसू तथा झाँझी का विवाह भी रचाया जाता है। सांझी और टेसू के खेल अधिकांश उत्तर भारत में लोकप्रिय है। टेसू की अपनी ही छटा है। टेसू का खेल उत्तर भारत और आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खेला जाता है, यहां इसे बालक ही नहीं युवा भी खेलते हैं। सांझी बनाते समय बालिकायें जो गीत गाती हैं वे तो पूरे के पूरे प्रादेशिक भाषा के होते हैं।

आमतौर पर टेसू का स्टैण्ड बांस का बनाया जाता है जो तीन बाणों का रूप है तथा जिसमें मिट्टी की तीन पुतलियां फिट कर दी जाती हैं। जो क्रमश: टेसू राजा, दासी और चौकीदार की होती है या टेसू राजा और दो दासियां होती हैं। मध्य में मोमबत्ती या दिया रखने का स्थान होता है।
टेसू जो कि का खाटू श्याम जी का रूपांतरण है, श्याम बाबा की कहानी महाभारत से शुरू होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पांडव भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी मां से सीखी। इसके अलावा उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किए और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। वहीं अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे। 

महाभारत के युद्ध में मां की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध में अर्जुन का साथ देने जा रहे थे तभी मां ने उनसे कहा की तुम उसकी तरफ से युद्ध करोगे जो हार रहा होगा। इधर, भगवान श्री कृष्ण सब कुछ जान लिया और उन्होंने ब्राह्मण के रूप में उनकी परीक्षा ली उनसे पूछा की तुम्हें तीन बाण प्राप्त हुए हैं और तुम अर्जुन की तरह से लड़ोगे तो कौरव खत्म हो जाएगा और फिर वचन अनुसार कौरव की तरह से लड़ोगे तो ये खत्म हो जाएंगे। इस पर बर्बरीक ने उपाय पूछा कि तो फिर हमें क्या करना चाहिए। कृष्ण ने उनका सिर मांग लिया इस पर उन्होंने अपना सिर भगवान कृष्ण को दे दिया। कृष्ण ने ऐसे बलिदान से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम के नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलयुग में हारे गए का साथ देने वाला एक ही श्याम नाम धारण करने वाला समर्थ है और खाटू नगर तुम्हारा धाम बनेगा। तुम्हारे सिर को खाटू में दफनाया जाएगा। वहीं तुम्हरी मां के वचन अनुसार जो भक्त हार गया हो तुम उसके सहारा बनोगे।

पारम्परिक टेसू की आँखों और नाक तथा इसके मुख के स्थान पर कौड़ी चिपकाई जाती है। अतः चार कौड़ियों की आवश्यकता होती है। बाद में ये कौड़ियाँ सँभालकर रख ली जाती हैं क्योंकि इनको शुभ और कल्याणकारी माना जाता है।

टेसू रे टेसू घंटार बजाना,
इक नगरी दस गाँव बसाना।

उड़ गए तीतर रह गए मोर,
गबरू बैल को ले गए चोर
चोरों के घर खेती हुई,
खाके  चोरनी मोटी हुई,

मोटी होके मायके आई,
देख हँसे सब लोग लुगाई,

गुस्सा  होके पहुँची दिल्ली,
दिल्ली से लाई दो बिल्ली,
एक बिल्ली कानी,
सब बच्चों की नानी,

नानी नानी टेसू आया,
संग में अपने झाँझी लाया,

मेरा टेसू यहीं अड़ा,
खाने को माँगे दही बड़ा,

दही बड़ा हो हइया, झट निकाल रुपइया,
रुपए के तो ला अखरोट,
मुझको दे दे सौ का नोट।

मेरा टेसू यहीं खड़ा
मेरा दही बड़ा टेसू यहीं अड़ा,
खाने को माँगे दही बड़ा,

दही बड़ा बहुतेरा,
खाने को मुँह टेढ़ा। 

मथुरा को जाएँगे, चार कौड़ी लाएँगे

कौड़ी अच्छी हुई तो, टेसू में लगाएँगे,
टेसू अच्छा हुआ तो, गाँव में घुमाएँगे,
गाँव अच्छा हुआ तो, चक्की लगबाएँगे,
चक्की अच्छी हुई तो, आटा पिसवाएँगे,
आटा अच्छा हुआ तो, पूए बनवाएँगे,

पूए अच्छे हुए तो, गपगप खा जाएँगे,

खाकर अच्छा लगा तो बाग घूमने जाएँगे,

बाग अच्छा हुआ तो, माली को बुलाएँगे,

माली अच्छा हुआ तो, आम तुड़वाएँगे,

आम अच्छे हुए तो, घर भिजवाएँगे,

 घर भिजवाकर, अमरस बनवाएँगे,

 अमरस अच्छा हुआ तो, मथुरा ले जाएँगे।

कुसुम सरोवर, गोवर्धन पर्वत, मथुरा

ब्रज चौरासी कोस मंदिर दर्शन श्रंखला 

#कुसुम_सरोवर

यह राधाकुंड से तीन किमी० दूर गोवर्धन परिक्रमा
मार्ग में स्थित है।यहाँ पर किशोरी जी फूलमाला बनाकर स्यामसुंदर को पहनाती हैं।कुंड का नव निर्माण सीढ़ियाँ सन् 1767 में भरतपुर के प्रतापी राजा जवाहर सिंह ने कराया।घाट के पश्चिम दिशा में सूरजमल की छतरी है।दाऊजी का मंदिर और उत्तर दिशा में सूरजमल की छतरी है।उत्तर पश्चिम कोण पर उद्धव जी की बैठक है,पास में नारदकुंड तथा पास में ग्वालियर के राजा का मंदिर बना है।

गोवर्धनाद्दूरेण वृन्दारण्ये सखी स्थले।
प्रवत्त: कुसुमाम्भोषो कृष्ण संकीर्तनोत्सव:।।
(भागवत १०/२/३०)

कुसुम सरोवर ही बज्रनाभ व उनकी माँ ऊषा ने श्री मद्भागवत कथा का श्रवण किया।जो शुकदेव मुनि ने सुनाई।जो उद्धव जी ने परीक्षित को आदेशित किया।


Thursday, May 12, 2022

मोहिनी एकादशी

कल मोहिनी एकादशी थी, कहा जाता है कि मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने सागर मंथन में निकले अमृत के लिए लड़ते हुए देवता और दैत्यों के बीच मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत कलश से अमृत पिलाया था, भगवान का मोहिनी रूप इतना सुन्दर था कि भगवान शंकर जी भी उन पर मोहित हो गए थे